हवा में तैरती हुई एक हरी नदी
डा. सुनील दीपक, 14 फरवरी 2021
प्राचीन संसार के सात अजूबों में से एक अजूबा था बेबीलोन के झूलते बाग. यह सचमुच के बाग थे या मिथक यह कहना कठिन है क्योंकि इन बागों के बारे में कुछ प्राचीन लेखकों ने लिखा अवश्य है लेकिन इनका कोई पुरात्तव अवशेष नहीं मिल सका है। प्राचीन कहानियों के अनुसार इन बागों को आधुनिक ईराक के बाबिल जिले में ईसा से 600 सौ वर्ष पूर्व बेबीलोन के राजा नबुछडनेज़ार ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया था, जिसमें राजभवन में विभिन्न स्तरों पर नीचे पत्थर लगवा कर उन पर ऊपर बाग बनवाये गये थे। न्यू योर्क शहर को सड़क से ऊँचे तल पर बनी पुरानी रेलगाड़ी की लाईन पर बाग बनाने की प्रेरणा शायद बेबीलोन के झूलते बागों से ही मिली थी। न्यू योर्क का यह बाग हवा में तैरती हुई एक हरी नदी सा दिखता है।

समय के साथ शहरों के इतिहास भी बदलते रहते हैं। अक्सर जँगलों, नदियों और झीलों की जगह आधुनिक शहर प्रशासक वहाँ पर भवन बनवा देते हैं क्योंकि ज़मीन, मॉल, दुकानें और घर बेचने में पैसा मिलता है, जबकि जँगलों, नदियों, झीलों की प्राकृतिक सम्पदा को नगद नहीं भुनाया जा सकता। दिल्ली, बँगलौर आदि शहरों में ऐसा ही हुआ है। लेकिन अगर शहरवासी जागृत हो जायें तो वह अपने आस पास की प्रकृति के संरक्षण के लिए लड़ते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि रहने के वातावरण को सौम्य बनाने में प्रकृति का योगदान सबसे महत्वपूर्ण है। न्यूयोर्क का तैरता हुआ बाग शहरवासियों की कोशिशों का ही नतीजा है।
हाईलाईन रेलवे का इतिहास
न्यूयोर्क शहर पाँच हिस्सों में बँटा है - ब्रोँक्स, ब्रुकलिन, मेनहेटन, क्वीनस तथा स्टेटन द्वीप। मेनहेटन के पश्चिमी भाग के इस हिस्से में विभिन्न फैक्टरियाँ और उद्योगिक संस्थान थे, जिनके लिए 1847 में पहली वेस्ट रेलवे की लाईन बनायी गयी थी जो सड़क के स्तर पर थी। रेलगाड़ी से फैक्टरियों तथा उद्योगिक संस्थान अपने उत्पादन सीधा रेल के माध्यम से भेज सकते थे। लेकिन उस रेलवे लाईन की कठिनाई थी कि वह शहर के उन हिस्सों से गुज़रती थी जहाँ बहुत से लोग रहते थे, और आये दिन लोग रेल से कुचल कर मारे जाते थे। इतनी दुर्घटनाएँ होती थीं कि इस इलाके का नाम "डेथ एवेन्यू" (Death avenue) यानि "मृत्यू का मार्ग" हो गया था.
तब इन रेलगाड़ियों के सामने लाल झँडी लिए हुए घुड़सवार गार्ड चलते थे ताकि लोगों को रेल की चेतावानी दे कर सावधान कर सकें, जिन्हें "वेस्टसाईड काओबायज़" (Westside Cowboys) के नाम से बुलाते थे।
शहर फ़ैलता जा रहा था, जनसंख्या बढ़ रही थी इसलिए 1929 में न्यूयोर्क की नगरपालिका ने यह निर्णय लिया कि यह रेलवे लाईन बहुत खतरनाक थी और दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सड़क से उठ कर ऊपरी स्तर पर नयी रेल लाईन बनायी जाये. पाँच साल बाद, 1934 में यह नयी रेलवे लाईन बन कर तैयार हो गयी।
फ़िर समय के साथ शहर में बदलाव आये और इस रेलवे लाईन के आसपास बनी फैक्टरियाँ और औद्योगिक संस्थान एक एक करके बन्द हो गये। बजाय रेल के अधिकतर सामान ट्रकों से भेजा जाने लगा, तो रेल की उपयोगिता कम हो गयी। शहर का यह हिस्सा भद्दा और गन्दा माना जाता था। वहाँ अपराधी तथा नशे की वस्तुएँ बेचने वाले घूमते थे, इसलिए लोग शहर के इस भाग में रहना भी नहीं चाहते थे। इन सब कारणों की वजह से इस रेलवे लाईन के कुछ हिस्से तो 1960 में बन्द कर दिये गये और बाकी के हिस्सों ने 1980 तक काम किया। उसके बाद से इस रेल लाईन को पूरी तरह से बन्द कर दिया गया।
रेलवे लाईन की जगह बाग
जब रेलवे लाईन बन्द हो गयी तो कुछ लोगों ने, जिन्होंने रेलवेलाईन के नीचे की ज़मीन खरीदी थी, नगरपालिका से कहना शुरु कर दिया कि ऊपर बनी रेलवेलाईन को तोड़ दिया जाना चाहिये ताकि वह लोग उस जगह पर नयी ईमारते बना सकें। कुछ हिस्से तोड़े भी गये। लेकिन 1999 में वहाँ आसपास रहने वाले लोगों ने न्यायालय में अर्जी दी कि रेलवे लाईन के बचे हुए हिस्से को शहर की साँस्कृतिक और इतिहासिक धरोहर के रूप में संभाल कर रखना चाहिये और तोड़ना नहीं चाहिये।
न्यायालय ने नगरपालिका से लोगों की बात मानने की सलाह दी। इस तरह से 2003 में नगर पालिका ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया और लोगों से सुझाव माँगे कि सड़क के स्तर से ऊँची, पुल पर बनी रेलवे लाईन का किस तरह से जनहित के लिए प्रयोग किया जाये। इस प्रतियोगिता में एक सुझाव यह मिला कि पुरानी रेलवे लाईन पर एक बाग बनाया जाये, जिसका कला और साँस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्रयोग किया जाये, जिसे नगरपालिका ने स्वीकार लिया।

इस तरह से सन 2006 में हाईलाईन नाम के इस बाग का निर्माण शुरु हुआ। यह बाग करीब 1.6 किलोमीटर लम्बा है। इसके कई हिस्सों में पुरानी रेल पटरियाँ दिखती हैं, जिनके आसपास पेड़, पौधे और घास लगाये गये हैं, साथ में सैर करने की जगह भी है। दसवीं एवेन्यू के साथ साथ बना यह बाग मेनहेटन के 14वें मार्ग से शुरु हो कर 30वें मार्ग तक चलता है। वहाँ के लोग कहते हैं कि अगर आसपास के किसी गगनचुम्बी भवन से नीचे इसको देखें तो यह परानी रेलवे लाईन शहर के बीच तैरती हुई हरे रंग की नदी सी लगती है।

इस बाग की वजह से शहर के इस हिस्से की काया ही बदल गयी है। आसपास के घरों की कीमतें बढ़ गयी हैं और पुरानी फैक्टरियों को तोड़ कर उनकी जगह पर नये घर, दफ्तर और बाजार बन गये हैं। बाग दिन भर पर्यटकों से भरा रहता है। इस बाग से शहर के साँस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए नयी जगह बन गयी है, यहाँ अक्सर कला प्रदर्शनियाँ आयोजित होती हैं।

अंत में
न्यू योर्क के हवा में तैरते पार्क जैसा एक पार्क स्पेन के वालेन्सिया शहर में भी है, लेकिन वह उसका उल्टा है, यानि वालेन्सिया का बाग शहर से एक तल नीचे है जहाँ कभी तूरिया नदी बहती थी। शहर के बीच में से बहने वाली इस नदी में अक्सर बाढ़ें आती थीं इसलिए उन्होंने शहर के बाहर नहर बना कर नदी का रास्ता बदल दिया और शहर के भीतर जहाँ कभी नदी बहती थी उसे एक नौ किलोमीटर लम्बे बाग में बदल दिया गया।

मैं इटली के उत्तरपूर्व में स्कियो नाम के शहर में रहता हूँ जो कभी अपनी ऊन मिलों के लिए दुनिया भर में विख्यात था। पिछले कुछ दशकों में धीरे धीरे वह ऊन मिलें बन्द हो गयीं तो हमारे यहाँ भी ऐसी ही बहसें हुईं कि पुरानी मिल की जगह पर क्या बनाया जाये। हमारी एक पुरानी मिल को कला तथा नाटक स्थल में परिवर्तित किया गया है।
दिल्ली में हम लोग राजेन्द्र नगर में रहते थे। हमारे घर के पास अरावली की पहाड़ियाँ थीं और सब लोग कहते थे कि उन पहाड़ियों और जँगलों की प्राकृतिक सम्पदा को सम्भाल कर रखना चाहिये। लेकिन जितनी बार वहाँ से गुज़रता हूँ मुझे लगता है कि विकास के नाम पर उस ज़मीन के एक एक करके टुकड़े काटे जा रहे हैं।
जब नागरिक जागरूक हो कर अपने शहरों की प्राकृतिक, साँस्कृतिक और इतिहासिक सम्पदा को बचाने की ठान लेते हैं, तो उसमें सभी का फायदा है।
काश हमारे भारत में भी ऐसा हो. गँगा, जमुना, नर्मदा जैसी नदिया हों, प्राकृतिक सम्पदा से सुन्दर शिमला या मसूरी के पहाड़ हों या दिल्ली शहर के बीच में प्राचीन पहाड़ी, हर जगह खाने खोदने वाले, उद्योग लगाने वाले, प्राईवेट स्कूल चलाने वाले, मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे बनवाने वाले, हाऊसिंग कोलोनियाँ बनवाने वालों के हमले जारी हैं, जिनके सामने राजनीति आसानी से बिक जाती है। इनकी रक्षा के लिए हम सब जागें, जनहित के लिए लड़ें, यह मेरी कामना है.
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